लोकतंत्र के  प्रखर प्रहरी लोकबन्धु : डॉ सौरभ राय

0
251

पुण्ततिथि पर विशेष


‘ साधन की ओर न ताकेंगे कांटो की राह हमारी है, मन मस्त फकीरी धारी है अब एक ही धुन जय जय भारत’
 यह पंक्ति हूबहू बैठती है लोकतंत्र के प्रखर प्रहरी लोकबंधु राजनारायण जी पर, काशी के राज परिवार से निकलने वाले राज नारायण अपने जीवन में राजशाही सत्ता का लोभ त्यागकर जीवन को लोगों के प्रति समर्पित कर दिया, राजनैतिक जीवन में अपने फक्कड़ अंदाज एवं बेबाक विचारों के लिए विख्यात राज नारायण जी सहज ही युवाओं और विद्यार्थीयों को आकर्षित कर लेते, इनका राजनैतिक जीवन संघर्षो से भरा रहा वे अपने जीवन के 69 वर्षों में 80 बार जेल गए राजनीति एवं लोकतंत्र में अधिकारों के लिए उनका संघर्ष आजादी के पहले एवं आजादी के बाद भी जिंदाबाद है,जब वे काशी हिंदू विश्व विद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष थे (1939-40) उन्होंने अपने विद्रोही तेवरों के दम पर स्वतंत्रता आंदोलन को ऐसी धार दी कि अंग्रेजों की सिंहासन की चूल्हे चरमरा उठी। उस दौरान हैरान परेशान ब्रिटिश प्रशासन ने इन्हें जिंदा या मुर्दा गिरफ्तारी पर 5000 रुपये इनाम की घोषणा की। इस बीच वे गिरफ्तार होकर पहली जेल यात्रा की।


राजनीती में डॉ लोहिया के हनुमान कहे जाने वाले राजनारायण अपनी अगड़धत्त राजनैतिक शैली एवं मूल्यों के लिए आलोचनाओ के केंद्र में भी रहे,परन्तु उन्होंने अपने मूल्यों से कभी समझौता नही किया,आज जाति,परिवार,क्षेत्र और धर्म के नाम होने वाली राजनीति में राजनारायण सदैव प्रासंगिक है,’ना सम्मान का मोह ना अपमान का भय’ रखने वाले लोकबन्धु ने 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ कर समूचे भारत को अपनी राजनीतिक हैसियत से लोक अदालत में परिचय कराया वही हार के बाद इंदिरा गांधी पर चुनावी कदाचार के आरोप में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दिया, जिसमें इंदिरा गांधी हार गयी एवं न्यायमूर्ति जगनमोहन लाल सिन्हा ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में श्रीमती गांधी की जीत को अवैध करार दिया एवं 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दिया, इस प्रकार से उन्होंने आयरन लेडी के नाम से विख्यात इंद्रा गाँधी के अहंकार को लोकतंत्र का आईना दिखाया।राजनारायण जी की गहरे जनसरोकार वाली बुलंद आवाज, मजबूत कद-काठी, सौम्य पर मुद्देगत आक्रामक हंगामेदार स्वभाव और तर्कपूर्ण वाणी संसद में सबका ध्यान खींच लेती है। राममनोहर लोहिया जी ने यथार्थ ही कहा था की – 
‘जब तक राजनारायण जैसे लोग हैं, देश में तानाशाही असंभव है’
विधानसभा के सदन में एक जनप्रतिनिधि समूह के साथ हुए  ऐसे अन्याय से आहत समाजवादी नेता और राजनारायण के राजनीतिक गुरू डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने लखनऊ में खुद समाजवादी कार्यकर्ताओं के एक विरोध प्रदर्शन को संबोधित करते हुए कहा था कि, “जनता के हिमायती, संसदीय अधिकारों की रक्षा के योद्धा और सर्वोपरि हिंसा के दुश्मन और संसद में उतने ही, जितने उसके बाहर सिविल नाफरमानी के सिपाही की हैसियत से राजनारायण का नाम संसदीय इतिहास की परिचयात्मक छोटी-छोटी पुस्तकों में सुरक्षित रहेगा। उन्हें उस आदमी की हैसियत से याद किया जाएगा, जिसने अपने सिद्धांत का साक्षी अपने शरीर को बनाया। यह कहना बेहतर होगा कि राजनारायण ने संसदीय आईने को बेदाग और निष्कलंक रखने के लिए शारीरिक पीड़ा उठाई। चाटुकार और कपटी इसकी निंदा चाहे जितनी करें, यह संसदीय कार्यप्रणाली को दुरूस्त करने का बड़ा कारण होगा।”


आज राजनीती के वैमनस्य,एवं विचारों का मूलगत हास् होना जयनारायण जैसी सोच का आभाव है,आज सत्ता की परिधि ही लोकतंत्र बन चुकी है एवं पार्टी की बातें ही लोकवाणी इस स्थिति में युवाओ को आगे आकर शंखनाद करना होगा यही हमारे राजनैतिक पूर्वजो को श्रद्धांजलि होगी ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here