पंचांग ने सचेत किया था वायु विध्वंस की गंभीर घटना से : आचार्य संजय तिवारी

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एयर इंडिया की कर्णावती दुर्घटना के बाद सोशल मीडिया पर जैसे ज्ञान की बाढ़ सी आ गई है। विज्ञान, महाविज्ञान, और सूक्ष्म तकनीक से लेकर क्वांटम फिजिक्स और संपूर्ण विमानन तकनीक पर जैसे ज्ञान की प्रचंड धारा ही बहने लगी है। इसी क्रम में सुबह से एक पंचांग का ऐसा पृष्ठ भी प्रसारित हो रहा है जिसमें एक तीर का निशान लगा कर दिखाया गया है कि पंचांग ने पहले ही वायु दुर्घटना के बारे में आगाह किया था। यह वास्तव में पंचांग का ही पृष्ठ है, इसमें कोई संदेह भी नहीं है। इसमें जो लिखा है वह भी सत्य ही है लेकिन प्रश्न यह उठता है कि जब पंचांग में सब लिखा है तो फिर इसको कोई गंभीरता से क्यों नहीं लिया या ले रहा था। इसके लिए कुछ आवश्यक तथ्य जानना सभी के लिए आवश्यक है। यद्यपि मैं ज्योतिर्विज्ञान अथवा खगोल शास्त्र का न तो विद्यार्थी हूं और न ही अध्येता किन्तु जिस तरह आभासी दुनिया में ज्ञान की धारा बह रही है उसको देख कर कुछ आवश्यक बिंदुओं की चर्चा करना जरूरी लगा।
वस्तुतः पंचांग एक अति प्राचीन वैदिक ज्योतिषीय ग्रंथ है जो सनातन संस्कृति, खगोल शास्त्र और ज्योतिष में समय के सटीक मापन और शुभ मुहूर्त निर्धारण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। पंचांग शब्द संस्कृत के “पंच” (पांच) और “अंग” (अंग या भाग) से बना है, जिसका अर्थ है पांच अंगो वाला , जो भारत में प्राचीन काल से परंपरागत रूप से उपयोग में लाए जाते रहे हैं। पञ्चाङ्ग में समय गणना के पाँच अंग हैं : वार , तिथि , नक्षत्र , योग , और करण।
इन्हीं पांच अवयवों की अवस्था पंचांग में वर्णित रहती है। उत्तर भारत में काशी पंचांग और हृषिकेश पंचांग इतने ज्यादा चलन में हैं कि इन्ही के माध्यम से सभी पुरोहित लोग शादी, जन्म कुंडली और अन्य मांगलिक कार्यों के लिए मुहूर्त निर्धारित करते हैं। इसी आधार पर सभी मंगल कार्य संपन्न होते हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत में तमिल, मलयालम, कन्नड़ आदि पंचांग भी प्रकाशित होते हैं। मध्य भारत में इंदौर और भोपाल से भी पंचांगों का प्रकाशन होता है।
इस समय पंचांग की चर्चा का उद्देश्य दूसरा है। यह सत्य है कि काशी हृषिकेश सहित अनेक पंचांगों में वर्ष 2025 और 26 अर्थात विक्रमी और शक संवतों के लिए प्रत्येक पल की पूरी जानकारी प्रकाशित है। ऐसा प्रत्येक एक वर्ष के लिए यह प्रकाशन होता है किन्तु प्रश्न यह है कि केवल पुरोहितों के अलावा इसे पढ़ता कौन है। और पुरोहित लोग भी अपनी आजीविका भर की जानकारी ही इससे लेते हैं।
भारत में एक विडंबना यह है कि सभी अपनी अपनी स्थापना में लगे हैं। सभी को श्रेष्ठ और शुद्ध सनातनी साबित करना है। चैनल वाले कुछ को रंगीन कपड़े पहना कर प्रसारित कर देते हैं। वे स्थापित ज्योतिर्विद बन जाते हैं। उनका अपना धंधा शुरू हो जाता है। जो कथित ज्योतिषी बन कर व्यवसाय में लगे हैं उन्हें केवल राजनीतिक भविष्यवाणियां ही समझ में आती हैं । कही तुक्का लग गया तो व्यवसाय आगे निकल पड़ता है।
काशी से इस विधा के लिए अत्यंत गंभीर अपेक्षाएं रहती हैं। ऐसा माना जाता है कि खगोल विज्ञान और ज्योतिष के लिए काशी में बहुत काम किया जाता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में इसके लिए बाकायदा एक संपूर्ण विभाग भी है लेकिन दुख इस बात का होता है कि इतनी गंभीर भविष्य विद्या को लेकर काशी में कोई गंभीर विमर्श होता नहीं दिखता। भविष्य की लगभग सभी घटनाओं के संकेत पंचांगों में होते हैं। इस विद्या के जिम्मेदार लोग, आचार्य गण यदि वास्तव में गंभीर होते तो इस पर विमर्श करते और राज्य तथा राष्ट्र को उचित सलाह और मार्गदर्शन दे सकते थे। यह नहीं हो रहा। इसके स्थान पर वेशधारी ज्योतिषी इस गूढ़ विद्या को व्यवसाय बनाकर समाज को भ्रमित कर रहे। निर्दिष्ट भविष्य को बांच कर समाज को संचालित करने वाले तत्व गौण हो गए हैं। यह गंभीर चिंता की बात है।
क्रमशः

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