Friday, April 19, 2024
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भूली बिसरी यादें

लाल बहादुर शास्त्री के जयंती पर विशेष

10 जनवरी 1966,सोवियत संघ के ताशकंद शहर में भारत के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के अयूब खान लंबी मशक्कत के बाद एक समझौता करते हैं जिन्हें “ताशकंद” समझौता कहा जाता है।


समझौते के लिए भारत की तरफ से वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर भी ताशकंद गए थे।वे अपनी किताब “Beyond the Lines” में लिखते हैं कि “आधी रात के बाद अचानक मेरे कमरे की घंटी बजी,दरवाजे पर एक महिला खडी थी।उसने कहा कि आपके प्रधानमंत्री की हालत गंभीर है।मैं करीबन भागते हुए उनके कमरे में पहुँचा,लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।कमरे में खडे एक शख्स ने इशारा से बताया कि पीएम की मौत हो चुकी है।”


भारतीय प्रतिनिधिमंडल जो ऐतिहासिक समझौते के बाद गहरी नींद में सो रहे थे,वे स्तब्ध थे।तुरंत ये खबर भारत भेजी गई।कहा जाता है कि परिवार के आग्रह पर वहाँ भी पोस्टमार्टम नहीं हुआ और भारत में भी नहीं हुआ।यद्यपि सोवियत सरकार ने पोस्टमार्टम की पेशकश की थी।
शास्त्री जी की संदिग्ध मौत ने लोगों के मन में कुछ सवाल उठाए थे, जिसका जवाब आज तक नहीं मिला।


पहला सवाल ये था कि उनका पोस्टमार्टम क्यों नहीं कराया गया?इंदिरा गांधी ने संसद में कहा था कि सरकार पोस्टमार्टम करवाना चाहती थी मगर शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री इसके लिए तैयार नहीं हुईं।


दूसरा एक सवाल जिसने सभी को शंका में डाल दिया वो ये था कि उस रात उनके निजी रसोइया रामनाथ के बजाय उस समय रूस में भारत के राजदूत टी.एन.कौल के शेफ जान मोहम्मद ने खाना बनाया था।खाना खाकर वो सोने चले गए और उसके बाद वो नहीं उठे।


तीसरी बात ये थी कि उस समय लीडर्स जिस कमरे में रूकते थे वहाँ एक घंटी लगी होती थी,जो आपातकाल के समय बेहद महत्वपूर्ण हो जाती थी, मगर शास्त्री जी के कमरे में कोई घंटी नहीं पाई गई।


चौथा शास्त्री जी की मौत के दो अहम गवाह पहला उनके निजी चिकित्सक डा.आर.एन.चुग और रसोइया रामनाथ की संदिग्ध परिस्थितियों में रोड एक्सीडेंट में मारा जाना।
आपको बता दें लालबहादुर शास्त्री की मौत के एक दशक बाद 1977 में सरकार ने उनकी मौत की जाँच के लिए राज नारायण समिति का गठन किया।इस समिति ने तमाम बिंदुओं पर जाँच की मगर इसकी फाइनल रिपोर्ट कभी प्रकाशित नहीं हो सकी।


अपनी आत्मकथा में कुलदीप नैयर लिखते हैं कि इंदिरा गांधी दिवंगत प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की समाधि दिल्ली में बनाने की इच्छुक नहीं थीं मगर ललिता शास्त्री ने इंदिरा गांधी को आमरण अनशन करने की धमकी दे दी।पेशोपेश में पडी इंदिरा गांधी को तब दिल्ली में समाधि बनाने का निर्णय करना पडा
( अजय श्रीवास्तव वरिष्ठ के Fb वाल से साभार )

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