राम ने हनुमान को ज्ञान की बात बताई

0
361

।। संस्कृति और प्रवृत्ति विचार ।।

हनुमानजी विगत कुछ दिनों से भगवान् राम के आस पास व्यग्र भाव से विचरण कर रहे थे लेकिन कुछ पूछने की उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी। एक दिन भगवान् श्रीराम एक शिलाखंड पर बैठे हुए थे और हनुमानजी उनकी चरण सेवा कर रहे थे।

भगवान् भक्तों का कष्ट बहुत दिन न देख पाने के स्वभाव के कारण स्वयं पहल करते हुए बोले कि- हनुमान ! इधर आप बहुत व्यग्र दिखाई दे रहे है, जो कुछ भी पूछना है निःसंकोच पूछो।

हनुमानजी बड़े विनम्रभाव से बोले की प्रभु आपने तो हमें माँ सीता का पता लगाने के लिए भेजा था, लेकिन समर्थ होते हुए भी आपने अंगद को संधि प्रस्ताव लेकर क्यों भेजा ? यदि रावण आपका संधि प्रस्ताव मान लेता तो उसने जो सीता माँ का अपमान किया था उसका दंड आप कैसे देते ?

भगवान् श्रीराम मुस्कुराए और बोले कि- दुनिया, समाज और संस्कृति सब तर्क के आधार पर नहीं चलता, सबके अपने अपने गुण धर्म और सबकी अपनी अपनी प्रवृत्ति होती है और सब उसी के अनुसार चलते है। रावण राक्षस है और हम आर्य, हमारी उसकी प्रवृत्ति भिन्न है, पर स्त्री गमन, दुराचार, किसी की स्त्री हरण कर लेना, उपद्रव करके संसार के सारे सुख वैभव का उपभोग करना उसकी स्वाभाविक संस्कृति है।

हम आर्य है, हम जो अपने पराक्रम और परिश्रम से प्राप्त करना चाहते है वही वह आतंक फैलाकर पाना चाहता है। तुम जिसे अपराध मान रहे हो वैसा कर्म तो वह देव, गंधर्व, किन्नरों के साथ कई बार कर चुका है जिसका कोई कभी प्रतिकार नहीं किया। हम जो सीताजी को वापस मांग रहे हैं, उसे यह मेरा अपराध लग रहा है क्योंकि आज तक किसी ने ऐसी हिम्मत नहीं की। अब इसे विधि का विधान कहें या प्राणियों का तुच्छ अहंकार कि जिस कृत्य से उसे थोड़ा बहुत भौतिक सुख मिल जाता है वह उसी को अपना संस्कृति बना लेता है। तुच्छ बुद्धि वाले ऐसा कृत्य अनादी काल तक करते रहेंगे। तुम निश्चिन्त रहो हनुमान रावण पुत्र पुत्रादि, बंधु, बांधव सब गंवाकर भी मेरा प्रस्ताव नहीं मानेगा।

वैसे प्रत्यक्ष रूप से यह लड़ाई मेरे और रावण के बीच की है, लेकिन यह लड़ाई वास्तव में दो संस्कृतियों और दो प्रवृत्तियों के बीच की है, जो अनादी काल तक चलती रहेगी। इनमें समझौता कभी हो ही नहीं सकता। आर्य और राक्षस हर युग में रहेंगे।

।। आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र: ।।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here