कविता:
“समृद्धि रूपी कमल खिला”
बुआ उड़ गई, बबुआ उड़ गए।
उड़ गया फर्जी गांधी, जात पात सब जड़ से उड़ गए।।
हिंदू जब जब एक हुआ, सब गठबंधन ठगे गए।
कर्म योगी की आंधी से, जाति समीकरण बिगड़ गए।।
करते थे शीत कक्ष में, वोटों की अदला बदली।
जब जनता जनार्दन हुई, सारी परिभाषा ही बदली।।
जाति को वोट बैंक मानकर, अपना बैंक जो भरते थे।
जब जनता ने चौकीदार चुना, सब अपना वीजा भरते हैं।।
समाज समाज की बात जो करते,अपना परिवार सम बल करते।
दलित की बेटी बनकर के, कुबेर की बेटी बन बैठी।।
चौकीदार ने जब प्रण लिया, राष्ट्रहित सर्वोपरि किया।
सर्व जातियों के दलदल में, समृद्धि रूपी कमल खिला।।

जिला मीडिया प्रभारी
भारतीय जनता युवा मोर्चा
नोएडा महानगर