Saturday, March 25, 2023
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जब नेहरू ने अपनी कोट पर लगा गुलाब कामरेड को लगाया

कामरेड की जनशताब्दी समारोह में जुटान

15 अगस्त 1942 को कासिमाबाद थाना को अपनें सैकड़ों साथियों के साथ आग से जलाकर उस पर कब्जा कर तिरंगा फहराने वाले सरजू पाण्डेय जिले ही नहीं पुरे प्रदेश में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं । 19 नवम्बर 1919 को कासिमाबाद के एक छोटे से गांव उरहां में एक गरीब ब्राहम्ण परिवार में जन्म लेने वाले बालक सरजू पाण्डेय 8 अगस्त 1942 को अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में कूदा तो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा ।


सरजू पांडेय जब भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए तब वे आठवीं कक्षा के छात्र थे । ब्रिटिश शासन के खिलाफ उनकी गतिविधियों के लिए उन्हें देखते ही गोली मारने का आदेश दिया गया था । जब जेल में थे उस समय अपने सभी साथियों में एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जो अदालत के सामने अपने आरोपों को सहर्ष स्वीकार किया था । सरजू पांडेय की लोकप्रियता ऐसी बढी की 1957 में रसड़ा लोकसभा के साथ मुहम्मदाबाद विधानसभा का चुनाव एक साथ जीत कर पूरे देश में चर्चा का विषय बन गए थे । वह दूसरी लोकसभा के साथ तीसरी, चौथी और पांचवी लोकसभा के लगातार सदस्य रहे । 1957 और 1962 में रसड़ा निर्वाचन क्षेत्र से और तीसरी, चौथी और पांचवी बार गाजीपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीता था । जब पहली बार लोकसभा में गए तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनका नाम लेकर उनका परिचय पूछा और पास बुलाकर अपनी कोट में लगा गुलाब का फूल सरजू पांडेय की कोट में लगा दिया था 

अंग्रेजो भारत छोड़ों आंदोलन में गांधी जी के करो या मरो का नारे का असर जिले में लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा था । इस आंदोलन की अगुवाई कौन करें इसको लेकर लोग एक दुसरे को देख रहे थे । इसी बीच 15 अगस्त 1942 को सरजू पांडेय के नेतृत्व में सैकड़ों लोगों ने कासिमाबाद थाने को जलाकर तथा उस पर कब्जा कर तिरंगा लहरा दिया था । सरजू पाण्डेय और उनके साथियों ने जिले को सबसे पहले आजादी दिलाकर पूरे देश में अंग्रेजों का पांव हिला दिया था । 15 अगस्त 1942 को कासिमाबाद क्षेत्र एवं आसपास के सैकड़ों क्रांतिकारी जिले में ब्रिटिश हुकूमत की तरफ से की जा रही बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी से तंग आकर सरजू पांडेय के नेतृत्व में गिरफ्तारी के डर से पहले से भूमिगत चल रहे थे । उन्होंने अचानक थाने पर धावा बोलकर वहां तैनात अंग्रेजी हुकूमत के सिपाहियों, दरोगाओं को बंधक बनाकर मालखाने में रखे हथियार लूटकर पूरे थाने में आग लगा दिया । सभी साथियों के साथ तिरंगा लहराकर राष्ट्रगान के बाद थाने पर कब्जा जमा लिया था । क्रांतिकारियों की इस कार्रवाई से जिले में जहां आम जन खुशी मना रहे थे, वहीं ब्रिटिश हुकूमत ने पूरे जिले एवं आसपास की फोर्स मंगाकर विभिन्न धाराओं में 69 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। कासिमाबाद थाने में तिरंगा लहराकर आजादी का जश्न पूरे जिले में इस कदर मनाया गया कि धीरे-धीरे पूरे देश में क्रांति भड़कने लगी । कासिमाबाद थाना जलाने, हथियारों को लूटने आदि की घटनाओं में जिला जज की अदालत ने 21 जनवरी 1943 को दस वर्ष से लेकर छह वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाकर सरजू पांडेय समेत आठ लोगों को जेल भेज दिया , जबकि अन्य को बरी कर दिया गया।

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