विकास! ढुढ़ते रह जाओगे

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आजादी के बाद यू.पी./ बिहार के विकास की गति शुरुआत में कम संसाधनों की कमी की वजह से बाद में नेताजी लोगो की अकर्मण्यता की वजह से 1989 तक विकास रुकी रही। 1970 आते आते लोग बाजरे अौर ज्वार के भात खाते खाते हीरा जवाहरात के भात न खाकर सिर्फ चावल के भात खाने लगे। रबर की सडको की जगह गिट्‍टी तारकोल की मुख्य सड़के बनीं, मिट्टी के लिंक मार्ग बने। सिचाई के लिए बिजली
आई,सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बने जहां 1989 तक डाक्टर साहब लोग आते जाते रहे। छोटे गावों में प्राथमिक व बडे गावों मे माध्यमिक स्कूल बने । यह सब केवल विकास का झुनझुना था।
असली विकास की माँग तो 1977 में जय प्रकाश नारायण ने किया उसके बाद 1988 में आडवाणी जी ने किया।
जे.पी.की माँग का निहितार्थ था विकास
माने कुछ नहीं कुर्सी पर बैठ व्यक्ति पिछडा हो,ऎसा नही होगा तो हम रेल
की पटरियाँ तोड देगें ,सेना में विद्रोह
कराएगें। J.P.की माँग जनता ने पुरी की।
आडवाणी जी के माँग का निहितार्थ था
समस्त सभ्यता अौर संस्कृति एक मस्जिद में कैद है,इसे मुक्त करिये।
जनता ने इनको भी निराश नहीं किया।
U.P. का तीब्र गति से बल्कि सुपरसोनिक गति से विकास 1989 के
बाद हुआ। उस विकास मे पहला विकास केन्द्र में मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू कर किया गया अौर
भारतीय संस्कृति १९९२ दिसम्बर में
मुक्त हुई।बाजपेयी जी पर राष्टपुरुष
का लगा कलंक मिट गया।
1947 से 1989 तक सत्ताधारियों ने
केवल भ्रष्टाचार की मलाई खाई।
पिछले 27 सालों मे U.P.के तीव्र
विकास में भाजपा का भी साल वर्षों
का कोटा रहा है,इसका श्रेय केवल
सपा व बसपा नहीं ले सकते।
इस असेम्बली चुनाव में इस 27
वर्षीय कोटे की वजह से शायद यह
सुनने को कान तरस जाय कि
मितरो पिछले 70 सालो से एक ही परिवार ………।

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