Sunday, April 27, 2025
spot_img
HomeKuchh Hatakeनेताजी से बड़ा,नेताजी का नाम: डॉ अवधेश कुमार अवध

नेताजी से बड़ा,नेताजी का नाम
: डॉ अवधेश कुमार अवध



दिया था गर्म खूं हमने कि तुम आजादी लाओगे।
जुबां के हो धनी तुम, इसलिए वादा निभाओगे।
मगर क्यों दी दरिंदों को आजादी की दुल्हन लाकर ?
हुआ क्या माज़रा ऐसा, कहो तुम कब बताओगे?

सदियों से मकड़जाल में फँसाये रखने की हुनर रखते थे। अमरबेल की तरह सहारे को ही चूसकर निष्पाण करने का महारत हासिल था। अपने स्वार्थ के लिए न्याय की आड़ में अन्याय को बढ़ावा देने में वे दक्ष थे। बाँट – बाँटकर किसी का भी बंटाधार करने की कला वंशानुगत थी। लड़ते कम थे और लड़ाते ज्यादा थे। अवसरवाद के प्रबल हिमायती थे वे, इसीलिए तो उनके साम्राज्य में सूर्य अस्त नहीं होता था। ये ब्रितानी ही थे जिनका आधिपत्य दुनिया के ऊपर था। सोच पाना भी असम्भव था कि इनके पंजों से सही सलामत मुक्ति मिल सकती है! दुनिया के तमाम देश छटपटा रहे थे आजादी के लिए। उनमें से भारत भी एक था जहाँ क्रान्ति की ज्वाला बार – बार वन की आग की तरह फैली और स्वयं की राख तले बुझ गई। नौ दशकों के लगातार कमोबेश शहादत के बावजूद भी आजादी से हम मरहूम थे…….दूर थे।

शहीदे आजम भगत सिंह, चन्द्रशेखर, रामप्रसाद बिस्मिल, पंजाब केसरी लाला लाजपत राय, खुदीराम बोस और इनके जैसे हजारों लोगों की कुर्बानी प्रत्यक्ष रूप से सकारात्मक फल नहीं दे सकी। लोग निराश हो जाते लेकिन बालगंगाधर तिलक के गीता रहस्य का अभिमन्यु चक्रव्यूह की चुनौती स्वीकार कर चुका था। आजादी उसका एकमात्र लक्ष्य थी। इतिहास साक्षी है कि जब – जब कृष्णार्जुन महाभारत से दूर हुए तब – तब चक्रव्यूह की कुटिल चुनौती दी गई। चक्रव्यूह रचने वाला हमेशा भूल जाता है कि हर चक्रव्यूह के लिए वीरप्रसूता भारत माँ ने पहले से ही अभिमन्यु को तैयार कर रखा है जिसकी शहादत न सिर्फ चक्रव्यूह बल्कि महाभारत के अन्त का कारण बनती है।

सन् 1932 के बाद भारत की सक्रिय राजनीति में भी सुभाष चन्द्र बोस के रूप में एक अभिमन्यु का अभ्युदय हुआ। उसके समक्ष न सिर्फ दुश्मनों की अजेय फौज थी बल्कि आस्तीन के साँपों की संख्या भी बहुतेरी थी। सुभाष चन्द्र बोस जो अपनी क्षमता से नेताजी बन गये थे, उनको कांग्रेस के गाँधीमय अस्तित्व से बहुत निराशा हुई। वे हर मुद्दों पर अलग – थलग पड़ जाते। अन्तत: गाँधीजी से उनका मोहभंग हुआ और अपने बल बूते कुछ कर गुजरने का जज्बा लिए भारत के सीमावर्ती देशों में योजना को अमली जामा पहनाने में जुट गये। सावरकर का निर्देशन और रासविहारी बोस का समर्थन उनका आत्मबल और बढ़ा गया। उन्होनें चिंतन करते हुए पाया कि यह गुलामी सिर्फ हमारी समस्या नहीं है अपितु हमारे आस – पास के सारे देश इससे ग्रसित हैं। सबकी समस्या एक जैसी ही है। आश्चर्य जनक बात यह भी थी कि भारत से ज्यादा समर्थन उनको भारत के बाहर से मिला जो उनके लिए उत्साह वर्द्धक था। सोच – समझकर वे आजाद हिंद फौज को मजबूत करने में संलग्न हो गये। अब अंग्रेजों पर कई ओर से हमले होने शुरु हो गये। विश्वयुद्ध का डंका बज चुका था। उस वक्त भारत की राजनीति दो विपरीत खेमों में बँट चुकी थी। एक खेमा गाँधी जी के नेतृत्व में इस दुख की घड़ी में अंग्रेज समर्थक था तो दूसरा खेमा नेताजी के नेतृत्व में अंग्रेज विरोधी। उधर जर्मनी ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। क्रिप्स मिशन के लॉलीपॉप से कांग्रेस भी धोखा खाकर अलग हट गई थी। यह स्वीकार करने में हमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि अंग्रेजों के खिलाफ आधी दुनिया का नेतृत्व हमारे नेताजी ने किया था। गाँधीजी की अहिंसा कुछ हल्की पड़ी और कांग्रेस ने भारत छोड़ो आन्दोलन एवं करो या मरो का राग छेड़ दिया। बौखलाये अंग्रेज ब्रिटेन को लेकर चिंतित रहने लगे थे। जर्मनी – जापान भी अंगेजों के लिए भारी पड़ रहे थे। भारत के भीतर भी जनक्रान्ति भड़क उठी थी।

बहुमुखी प्रहार अंग्रेजों के लिए अप्रत्याशित एवं असह्य था। जगह – जगह से पाँव उखड़ने लगे थे। अमेरिका को दो विनाशकारी परमाणु बम छोड़ना पड़ा। राजनैतिक विश्वयुद्ध ठहर गया किन्तु जनाक्रोश चरम पर था। इसी बीच नेताजी सदा – सदा के लिए रहस्मय ढंग से हमें छोड़कर चले गये।

कहानी का क्लाइमेक्स तो उनके जाने के बाद ही शुरु हुआ। नेताजी का गायब होना उनके समर्थकों के मन में आशा का संचार कर गया और विरोधियों को और भी भयभीत कर गया। दोनों इस एक अटल सत्य पर कायम थे कि कुछ बहुत बड़ा होने वाला है नेताजी के द्वारा। अब नेताजी से बड़ा नेताजी का नाम हो गया था। अंग्रेजों के मन में पल – प्रतिपल नेताजी का खौफ रहने लगा। सेक्सपीयर के जूलियस सीजर को मारने के बाद भी लोग भयभीत होकर स्वयमेव मरने लगे थे जबकि सुभाष बाबू के मृत्यु का तो कोई प्रमाण भी नहीं था। षड्यन्त्रकारी उनकी मौत का प्रचार करते रहे लेकिन दुनिया में कोई भी इस बात को पचा नहीं पाया था। अन्तत: अंग्रेज सिमटते चले गये और न सिर्फ भारत बल्कि भारत के साथ ही बहुत से देश आजाद हो गये। नेताजी का अन्तहीन अन्त नेताजी से भी बढ़कर प्रभावकारी रहा है। अभिमन्यु अदृश्य होकर भी महाभारत की समाप्ति का कारण बना।


डॉ. अवधेश कुमार ‘अवध’
awadhesh.gvil@gmail.com

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

10cric

https://yonorummy54.in/

https://rummyglee54.in/

https://rummyperfect54.in/

https://rummynabob54.in/

https://rummymodern54.in/

https://rummywealth54.in/

MCW Casino

JW7

Glory Casino APK

Khela88 Login