Friday, March 29, 2024
spot_img
Homebharatदलितों ने भूमिहारों को हैंड पंप से पानी पीने से रोका

दलितों ने भूमिहारों को हैंड पंप से पानी पीने से रोका

1950 के संविधान के अनुसार आज हमारे देश में सभी नागरिकों को समानता का अधिकार है लेकिन नेताओं के राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की वजह से आज असमानता पहले से भी ज्यादा बढ़ गई है।

आज भारत प्राइम एक ऐसे ही हृदय विदारक खबर के बारे में बताने जा रहा है। दलित भूमिहारों को हैंडपंप से पानी नहीं पीने देते और शव जलाने के लिए लकड़ियों का उपयोग नहीं करने देते। जिसकी वजह से भूमि हारों को खाना बनाने वाली लकड़ियां शव जलाने के लिए इस्तेमाल करना पड़ रहा है। यदि हमारे संविधान में समानता का अधिकार होता तो क्या आज 70 साल बाद भी इस देश को इस तरीके की खबर सुनने को मिलता?

यह असमानता इसलिए है क्योंकि एससी एसटी एक्ट राजनीतिक कारणों से लाया गया था और आज राजनीतिक कारण से ही इसको नॉन बेलेबल बनाया गया है जिस का दुरुपयोग दलित बाहुल्य क्षेत्रों में दलित ज्यादा से ज्यादा फर्जी मुकदमा को करने में इस्तेमाल कर रहे हैं। आज किसी भी जगह जहां दलितों की संख्या ठीक-ठाक है, वहां फर्जी एससी एसटी के मुकदमे सवर्णों के ऊपर आपको मिलेंगे। यह एक ऐसा हथियार हो गया है जिसकी वजह से समानता तो दूर सवर्ण अपने आपको गिरफ्तार होने से भी नहीं बचा पाता है।

झारखंड की राजधानी से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हजारीबाग में भूमिहारों को पानी पीने से रोका जा रहा हैl घटना झारखंड के हजारीबाग स्थित कटकमसांडी पुलिस के अंतर्गत आने वाले पकरार गांव की है। जहां दलित बाहुल्य गांव में मात्र 4 घर भूमिहारों के हैं। वहीं करीब 250 घर दलित बिरादरी की है। गांव से दूर कर्नाटक में रहकर सेंट्रल यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग कर रहे सुबोध कुमार गांव छोड़कर इसलिए पढ़ने बाहर भेज दिए गए ताकि उनको कोई भी दलित एससी एसटी एक्ट में फसाना दे। अभी भूमि हारों का गांव में रहना किसी सजा से कम नहीं है। जानकारी के मुताबिक गांव के सभी भूमिहार लोगों पर एससी एसटी एक्ट व रेप जैसे गंभीर जुर्म फर्जी कायम किए गए हैं। पीड़ितों ने बताया कि सभी परिवार ने अपने बच्चों को गांव से दूर भेज दिया है ताकि वह किसी भी फर्जी केस में न फंस पाए।

जरा सोचिए यदि संविधान समानता का अधिकार देता है, तो क्या ऐसा संभव हो पाता। सरकार को इस बात का ध्यान देना चाहिए कि कैसे किसी एक गांव में चार ही घर यदि भूमिहार के हैं, तो उन सभी के ऊपर sc-st मुकदमा दर्ज कैसे हो गया? यह आश्चर्य नहीं है की दलित बाहुल्य क्षेत्र में केवल 4 भूमिहार परिवार कैसे 250 दलितों के साथ बुरा व्यवहार कर सकते हैं? इस मामले में वहां के डीएम और प्रशासन को भी अंदेशा होना चाहिए कि यह एक्ट फर्जी तरीके से लगाए जा रहे हैं।

सुबोध जब कर्नाटक से लॉकडाउन में लौट कर अपने घर आए तो उनको उनके घर के सामने लगे हैंडपंप से पानी पीने के लिए रोक दिया गया। सुबोध ने उस पर पानी लेने की कोशिश करी तो उनको मार कर भगा दिया गया। अगले दिन सुबोध ने फिर नल से पानी लेने की कोशिश की तो 50 से 60 दलित युवकों ने उनके घर पर धावा बोल दिया और कहा तुम भूमिहार इस नल से पानी नहीं पी सकते हो। अब इस तरीके की घटना केवल एक एससी एसटी एक्ट की वजह से हो सकता है। अभी इसको और भी ज्यादा खराब बनाने के लिए रामविलास पासवान अमेंडमेंट बिल लाने की सोच रहे हैं।

जब इस खबर को सुबोध ने इस खबर को मीडिया में उठाना चाहा तो दलित समर्थक बोल रहे थे “अब वह दलित कर रहे हैं तो दर्द हो रहा है।” सुबोध आगे बताते हैं उनके पास खेती बाड़ी की बहुत सारी जमीनें थी। जिनके कागजात भी उनके पास है लेकिन अब वहां कब्जा उन दलितों का है। उन लोगों ने लाठी और डंडों के बल पर खेतों पर कब्जा कर लिया है और लगभग सभी परिवारों को एससी एसटी एक्ट और रेप केस में फंसा दिया है। उनके पिता को भी इसी एक्ट में फंसाया गया था। अब सुबोध का कहना है खेती-बाड़ी ना होने की वजह से और बहुत सारे मुकदमा के लड़ने की वजह से उनकी आर्थिक स्थिति भी काफी दयनीय हो गई है।

दलित बहुल क्षेत्र होने की वजह से भूमिहारों की संख्या चींटी के बराबर है। उल्टा एससी एसटी एक्ट उनको कुछ ज्यादा ही सपोर्ट करता है। इसी प्रकार के केस मेे उनके पिता को झूठे हत्या के आरोप में 6 महीने के लिए जेल भी जाना पड़ा। जिसमें 1 साल के भीतर ही कोर्ट ने फर्जी करार देते हुए उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया था।

आगे और पता करने पर पता चलता है कि कुछ वर्ष पूर्व एक बुजुर्ग नंद किशोर सिंह के गुजर जाने पर लकड़ी काटने को लेकर भी दलितों से मारामारी हो गई थी। दलितों ने लकड़ी लेने से भूमिहारों को जबरन रोक दिया था। जिसके बाद घर में खाना पकाने वाले लकड़ी से शव को जलाया गया। यह सब प्रशासन देखते हुए भी चुप है। इसके अतिरिक्त दिल्ली में आईएएस कोचिंग कर रहे छात्र दुर्गेश सिंह को भी लॉकडाउन के दौरान फर्जी एससी एसटी एक्ट में इसलिए फंसाया गया क्योंकि दलित नहीं चाहते थे कि पढ़ाई पर ध्यान दे सकें। अब हर चीज के लिए भुमिहारों को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है और यह सब देख कर भी प्रशासन चुप्पी साधे हुए हैं।

एक और इसी तरह की घटना बिहार के जमुई में हुआ था जहां भूमि हारों को दलितों ने गांव से खदेड़ कर भगा दिया था

यह घटना जमुई बिहार गांव की है। इस घटना के सामने आने के बाद पहले चिराग पासवान के संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाले गांव लखनपुर में मार्च महीने में महा दलितों ने ब्राह्मण भूमिहारों के घरों में तोड़फोड़ कर आग लगा दी थी जिसके कारण सभी 10 घरों में वास करने वाले ब्राह्मण भूमिहारों को 15 दिन के लिए गांव छोड़कर भागना पड़ गया था। पीड़ितों के मुताबिक दलितों ने यह इसलिए किया था ताकि ब्राम्हण भूमिहारों को गांव से खदेड़ सके और उनकी जमीनों को हड़प सकें। अब इस तरीके की जातिवाद से त्रस्त इन परिवारों को न्याय कैसे मिल सकती है जबकि 90% से ज्यादा लोगों पर फर्जी एससी एसटी एक्ट ठोक दिया गया हो। आज हालात यह है, इन परिवारों के करीब करीब 80 फ़ीसदी जमीनों पर दलितों ने अपना कब्जा जमा लिया है, जिसका विरोध करने पर एक मुकदमा और लड़ना पड़ेगा।

जहां भी दलित बाहुल्य क्षेत्र है वहां ऐसी घटनाएं सामान्य हो गई है। दलित बाहुल्य क्षेत्र ही क्यों बहुत सारे ऐसे भी घटनाएं सामने आ रही हैं जहां पर वह 1–2 की संख्या में है लेकिन इस प्रकार के एससी एसटी एक्ट की वजह से बहुत सारे बेगुनाह या तो जेल में बंद है या तो फर्जी केस में मुकदमा लड़ रहे हैं। इस तरफ केंद्र सरकार और राज्य सरकार को जल्द से जल्द ध्यान देना चाहिए।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular