उत्तर प्रदेश में त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव के लिए घमासान गांव-गांव में शुरू हो गया है। हालांकि जब तक आरक्षण की सूची जारी नहीं हो जाती तब तक ये फुल रफ्तार नहीं ले पा रहा है।पंचायत चुनाव को लेकर पिछले कुछ सालों में ज्यादा मारा-मारी देखने को मिली है।
गांवों के विकास के लिए सरकार ने जमकर बजट दिया है।इस बजट को खर्च करने की जिम्मेदारी पंचायत के पदाधिकारियों की ही रहती है।ऐसे में लोगों को ये बहुत ललचाता है। लेकिन, यदि आप भी चुनाव में उतर रहे हैं तो जान लीजिए कि किस पद के लिए सरकार कितना मानदेय देती है।
पंचायत चुनाव में सबसे अहम पद ग्राम प्रधान का होता है। इसके चुनाव में जितनी जद्दोजहद देखने को मिलती है उतनी किसी भी चुनाव में नहीं होती। सरकार द्वारा भेजा गया विकास का पैसा ग्राम प्रधान के तय किए हुए कार्यों में ही खर्च होता है।
प्रधान बहुत पढ़ा लिखा और समझदार होता है तो अपनी पंचायत में जमकर विकास कार्य कराता है. हालांकि ये उसकी कमाई का कोई वाजिब जरिया नहीं होता है. सरकार ग्राम प्रधान को हर महीने मानदेय भी देती है. इस बार प्रदेश में 58 हजार 194 ग्राम प्रधान चुने जाएंगे।इन सभी को सरकार हर महीने 3500 रूपये मानदेय देगी. इसके अलावा इन्हें कोई भत्ता नहीं मिलता है.
ग्राम पंचायत सदस्य का पद अवैतनिक होता है।यानी इन्हें कोई मानदेय नहीं मिलता है और न ही इसके अलावा इन्हें कोई भत्ता भी नहीं मिलता है।
प्रमुख का चुनाव आम जनता नहीं करती है बल्कि जनता के द्वारा चुनकर आये क्षेत्र पंचायत सदस्य ही अपने में से किसी को प्रमुख चुनते हैं. सरकार इन्हें हर महीने 9800 रूपये का मानदेय देती है। प्रमुख का पद बहुत अहम होता है और इसे हासिल करने के लिए शाम,दाम,दण्ड, भेद का जमकर इस्तेमाल होता रहा है।
क्षेत्र पंचायत सदस्यों का पद अवैतनिक होता है। इन्हें कोई मानदेय नहीं मिलता है। इन्हें सिर्फ भत्ता मिलता है वह भी यात्रा भत्ता। बैठकों में भाग लेने के लिए इन्हें प्रति बैठक 500 रूपये भत्ते के रूप में मिलते हैं। इनका चुनाव आम जनता करती है।
जिला पंचायत अध्यक्ष का पद सबसे क्रीमी होता है। इसे जीतने के लिए कई बार बाहुबल का भी इस्तेमाल होता रहा है।सरकार जिला पंचायत अध्यक्षों को 14 हजार रूपये प्रति महीने के हिसाब से मानदेय देती हैं. इनका चुनाव आम जनता नहीं करती है।