गोस्वामी तुलसीदास जी कृत रामचरितमानस में अनेक चौपाई है जिसकी महत्ता का गुणगान ज्ञानी ऋषि मुनियों ने की है इसी क्रम में किष्किन्धा कांड की एक चौपाई है जिससे पढ़ते हुए कमर पर हाथ फेरने पर दर्द को आराम मिलने का दावा किया जाता है। इसका जिक्र मानस मर्मज्ञ रामभद्राचार्य जी भी करते हैं। आइए जानते हैं वह कौन सी चौपाई है ।
चौपाई : एक रूप तुम्ह भ्राता दोऊ तेहि भ्रम तें नहिं मारेउँ सोऊ॥
कर परसा सुग्रीव सरीरा। तनु भा कुलिस गई सब पीरा।।
भावार्थ : (श्री रामजी ने कहा-) तुम दोनों भाइयों का एक सा ही रूप है। इसी भ्रम से मैंने उसको नहीं मारा। फिर श्री रामजी ने सुग्रीव के शरीर को हाथ से स्पर्श किया, जिससे उसका शरीर वज्र के समान हो गया और सारी पीड़ा जाती रही॥3॥