कल्पनाथ राय की जयंती,4 जनवरी पर विशेष
कौन रहे कल्पनाथ राय ? जान समझ कर कल्पनाथ का सिंहावलोकन करेंगे तो बहुत सारे सियासी तिलस्म खुलते जांयगे । गोरखपुर विश्व विद्यालय के छात्र नेता रहे , समाजवादी रहे । ‘ये ‘ वाला समाजवादी नही , ‘वो ‘
वाले समाजवादी थे ( ये और वो यह स्वर्गीय जनेश्वर मिश्र के दिये गए शब्द हैं ) चलिए विषयांतर करके एक अंतर्कथा देख लें । 72 में बिल्थरारोड बलिया में समाजवादी युवजन सभा का एक विद्रोह सम्मेलन हुआ था । न चाहने के बावजूद देबू दा ( स्वर्गीय देवब्रत मजूमदार ) के आदेश से हम उस आयोजन के संयोजक बना दिये गए थे और जॉर्ज फ़र्नान्डिस उसका उद्घाटन व शिरकत करने पहुंचे थे । कथा लम्बी है पर मूल है पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों का विकास कैसे हो और विन्दुवार कार्यक्रम क्या हो ? उसी में गाजीपुर का सवाल उठा । किसी ने प्रस्ताव रखा छोटी लाइन हटा कर बड़ी लाइन बने । जॉर्ज जब रेल मंत्री बने तो गाजी पुर को बड़ी लाइन मिली । उसका शुभारंभ जॉर्ज को करना था ।
एक सांझ भाई कल्पनाथ का फोन आया – तुम कहाँ हो , हम आ रहे है अकेले में बात करनी है । तब हम सरकारी आवास पंडारा रोड पर रह रहे थे । आये और बात शुरू हुई । हमने हिदायत दी – कल्पनाथ भाई ! आप बोलते ज्यादा हैं , कम बोलिये , केवल मुद्दा बता दीजिए । हमे घूर कर देखते रहे , लगा गुस्से में हों , अचानक फिस्स से हंसे और हमे गले लगा लिए – तुम्हारे बारे में देबू दा सही बोल गया है , और उनकी आंख भर अयी । देबू दा का जिक्र और कल्पनाथ की भीगी पलकों के बीच के संबंध को फिर कभी देखेंगे विस्तार से अभी तो संक्षेप में जान लीजिए कल्पनाथ का एक असल रुख ।
कल्पनाथ समाजवादी थे । अभाव , तंगी , फक्कड़ई , स्वाभिमान सब अपनी जगह था , बेटा बीमार हुआ , बनारस में भर्ती हुआ , दवा के पैसे नही , खाने का जुगाड़ नही आसरा केवल देबू दा थे । मांग जांच कर दवा का बंदोबस्त होता । स्वाभिमान की गोपनीयता भी होती है । देबू दा को हम पर भरोसा था , कहाँ कहाँ से कितना मिलेगा ले आओ । टंडन टी स्टाल की दुकान पर कई बार दोनो एक दूसरे का हाथ पकड़ कर रोये हैं । लड़का नही बचा । कल्पनाथ टूट गए । समाजवाद फिर भी उनसे चिपटा रहा । एक दिन हेमवती नंदन बहुगुणा ने कल्पनाथ को पकड़ कर श्रीमती इंदिरा गांधी के हवाले कर दिया । कल्पनाथ का कुटुंब रजिस्टर बदल गया । कांग्रेस का मकसद रहा संसद में राजनारायण का जवाब उन्ही की शैली में कल्पनाथ देंगे , लेकिन कल्पनाथ ने यह कभी नही किया ,न ही कभी समाजवाद के खिलाफ एक शब्द बोले , बल्कि उनके पास जब शाम को समाजवादियों का झुंड पहुंचता तो कल्पनाथ की निगाह फटेहाल समाजवादी के खीसे पर रहती और वे उसे खुले मन से इमदाद करते । बहरहाल विषयांतर से बाहर आइये ।
– कल जार्ज गाजीपुर जा रहे हैं , बड़ी लाइन का उद्घाटन करने । तुम साथ मे हो ? हमने कहा – नही हम नही जा रहे , हमे वारंगल और धारवाड़ जाना है , जार्ज के साथ विजय नारायण जा रहे हैं ।
थोड़ी देर चुप रहे , फिर बोले – नही जार्ज के साथ तुम चलो । जार्ज के मंच से हमे बोलना है ।
- लेकिन प्रोग्राम तो जा चुका है जार्ज के साथ मंच पर एक सांसद थे राय जो प्रधान मंत्री वी पी सिंह के बहुत खास थे , उनका नाम है ।
- इसी लिए तो , तुम रहोगे तो हमारा इंतजाम हो जाएगा । कुछ करो । हमने जोखिम ले लिया कल्पनाथ भाई से कहा आप निकल जाये गाजीपुर अपने लोंगो को लेकर मंच के सामने डट जाय , जब जार्ज पहुचे तो उनके साथ आप भी मंच पर चढ़ चलें वो इंतजाम हम देख लेंगे । वही हुआ । हमने अपना कार्यक्रम बदला । जार्ज के साथ हो लिए । हमने आहिस्ता से जार्ज को सब बता दिया । जार्ज मुस्कराये। इसकी आदत अब भी वही है ?
- कल्पनाथ इलाहाबाद , बनारस , मेरठ , लखनऊ किस विश्वविद्यालय के छात्र रहे , तब यह सवाल पूछा जाता तो अग्रज श्याम कृष्णपाण्डे , देबू दा , सतपाल मलिक , की जिंदगी में कल्पनाथ की नम पलकों का जिक्र क्यों होता । अब तो वो साँचा ही बनना बन्द हुआ पड़ा है ।
- नमन कल्पनाथ भाई ।
(बी.एच.यू.छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष/वरिष्ठ समाजवादी नेता Chanchal BHU जी के एफबी वाल से साभार)