Thursday, May 16, 2024
spot_img
HomeEditors' Choiceकिसान बिल के बहाने सरकार को बौना दिखाने की साजिश तो नहीं...

किसान बिल के बहाने सरकार को बौना दिखाने की साजिश तो नहीं !

त्वरित टिप्पणी

लेखक/ कवि संजय रिक्थ की कलम से

आज अजीत अंजुम और राकेश टिकैत के बीच बातचीत का वीडियो सामने आया। अजीत अंजुम, अभिसार शर्मा, पुण्य प्रसून वाजपयी और आरफा खानम शेरवानी जैसे लोगों को भी यदा-कदा देखता-सुनता हूं। कहना न होगा कि ये लोग मोदी विरोधी हैं और उन्हें हर हाल में सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं। वे खुले तौर पर भाजपा के भी कट्टर विरोधी हैं। उन्हें सीएए, धारा ३७० का हटना, राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त होना, सब साजिश लगती है।

ये सब जाने-अनजाने रवीश पांडे की श्रेणी के मनोविकार को दिल में बसाये चल रहे हैं। इस श्रेणी से इतर पत्रकारिता को #गोदी #मीडिया कहकर गरियाते हैं। आनलाइन प्लैटफार्म ने इनको मौका भी अच्छा दिया है। खूबसूरत बैकग्राउंड में ओछी भाव-भंगिमा के साथ ये क्रांतिकारी पत्रकारिता के झंडाबरदार बनने को आकुल-व्याकुल हैं।

मीडिया इतना बंटा कभी नहीं दिखा। इसका कारण शायद यह रहा हो कि कांग्रेस के सामने कोई टिकाऊ दल कभी रहा नहीं। जैसे-जैसे राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का ग्राफ बढ़ता गया, मीडिया का सुर भी बदला। आज जब भाजपा मजबूती से सत्ता में है तो मीडिया का एक वर्ग उसकी अच्छाइयों को खबर बना रहा है। वहीं दूसरा वर्ग इसके विपरीत अलग राह पर है।

एक वर्ग जो भाजपा की अच्छाईयां बताता है, उसे #गोदी #मीडिया कहकर प्रताड़ित करना जैसे दूसरे वर्ग का धर्म हो गया हो। इस चक्कर में वे राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर भी निष्पक्ष होकर नहीं सोचते। और, अनजाने ही राष्ट्रविरोधी तत्वों की पैरोकारी करने लगते हैं।

प्रशांत भूषण जैसे लोग भी अपनी बुद्दिजीविता को तज उद्दंड हरकतें करने से बाज नहीं आ रहे।

राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार जबतक तीनों कानून वापस नहीं लेती, आंदोलन चलता रहेगा। उन्होंने आगे कहा कि किसान मंदिरों से कसम लेकर आये हैं कि मर जाएंगे, लेकिन जबतक कानून वापस नहीं होंगे, आंदोलन चलता रहेगा। टिकैत ने यह भी कहा कि वे कोर्ट के निर्णय को भी नहीं मानेंगे। अजीत अंजुम मजे ले-लेकर यह हमें बता रहे हैं।

इसका साफ मतलब है कि राकेश टिकैत या ऐसे विचार के लोग साफ तौर पर भारतीय संवैधानिक व्यवस्थाओं से स्वयं को ऊपर समझते हैं। वह सरकार जो महज एक वर्ष पहले भारी बहुमत से बनी, वे कुछेक हजार बड़े किसानों को साथ लेकर, दिल्ली की सीमाओं की घेराबंदी कर, उसे झुका देने पर आमादा है। वे सिर्फ विरोध करते और आगामी चुनाव में भाजपा को हरा देने की कसम खाकर सकुशल अपने घर लौटते तो बात समझ में आती। लेकिन वे ऐसा करना नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि केंद्र सरकार उनके सामने बौनी दिखे, कमजोर दिखे।

ऐसे उद्देश्य के साथ जो किसान नेता संवैधानिक प्रावधानों की धज्जियां उड़ाने सड़कों पर इस ठिठुरती ठंड में बैठे हैं, वे निश्चित तौर पर बाबा रामपाल और डेरा सच्चा सौदा की राह पर हैं। संपूर्ण देश जानता है कि बाबा रामपाल और डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम को पकड़ना तत्कालीन सरकारों के लिए आसान नहीं था। उनके लाखों अनुयायी भी सशस्त्र किलेबंदी कर कानून को धता बताने चल पड़े थे। नतीजा सबके सामने है।

ऐसा लगता है कि यह तथाकथित किसान आंदोलन निहित राजनीतिक स्वार्थों के हाथ लग कुतर्क भरी मांग भरवाने को आतुर हैं। इतना ही नहीं इनके संरक्षक अंतरराष्ट्रीय स्तर भी भारत सरकार को नीचा दिखाने के प्रयास में हैं। सनद रहे कि कनाडा की सरकार के मुखिया इस संबंध में बयान जारी कर चुके हैं। इसके पीछे उनकी लोकल राजनीति को साधने का स्वार्थ छिपा है। गौरतलब है कि कनाडा में पंजाबी अच्छी संख्या में बस गये हैं। वहां एक वोटर वर्ग के तौर पर पंजाबियों का उभार एक बड़ा कारण है उनके बयान के पीछे।

दूसरी तरफ देखें तो जिस प्रकार धर्मांध सीएए विरोधियों ने डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान धमाल मचाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने मुद्दे की पहचान सुनिश्चित करने की कोशिश की, वैसी ही कोशिश अब राकेश टिकैत जैसे लोग २६ जनवरी को करने के प्रयास में हैं।

सीएए का बवाल और अब का तथाकथित किसान आंदोलन में एक सहज साम्य है। दोनों लंबे घेराव की तैयारी के साथ आए। महीनों की खाने-पीने की तैयारी और रहने की व्यवस्था इनमें प्रमुख हैं। दोनों को वृहत मीडिया कवरेज मिला। दोनों के पीछे राजनीतिक रूप से परास्त राजनीतिक ताकत थी। वह राजनीतिक ताकत जो बरसों से हिन्दू हितों के खिलाफ फैसले लेते रहे। कांग्रेस और कम्युनिस्ट इनके सबसे बड़े पैरोकार रहे हैं। क्षेत्रीय दलों ने भी इनका समर्थन किया है, लेकिन सतर्कता के साथ।

सरकार जानती है कि तथाकथित किसान आंदोलन के समर्थक कुछ राजनीतिक दलों के हाथों की कठपुतली भर हैं। देशभर के ९०% किसानों को इस आंदोलन से कोई वास्ता नहीं है। सरकार चिंतित बस इस बात को लेकर है कि इसका देशव्यापी गलत संदेश न चला जाए।

सवाल यह है कि जिन किसानों की दिल्ली सीमा पर आंदोलनरत रहते हुए मृत्यु हुई है, उसके क्या कारण हैं। ख़बरें आयी हैं कि एकाध किसान ने आत्महत्या कर ली। तो मन में सहसा इस आंदोलन से पहले किसानों की आत्महत्या की खबरों ने ले ली। जिस किसान ने आत्महत्या की, क्या वह पहले कर्ज तले नहीं दबा था। टिकैत जैसे लोगों को इस बात का खुलासा करना चाहिए। कितने वृद्ध किसानों की मौत बेहिसाब ठंड की वजह से हुई, यह भी देश को बताया जाना चाहिए।

इस देश की नीतियों का निर्माण सड़क घेर कर तो कतई नहीं किया जा सकता। लोकतांत्रिक तरीकों से विरोध को कोई सरकार मना नहीं कर सकती। किन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि लोकतांत्रिक तरीकों से बनी सरकार को ब्लैकमेल करना भी जायज नहीं है।

यह बात गले से बिल्कुल नहीं उतरती कि टिकैत और उनके समर्थक बिन्दुवार बात नहीं कर सीधे कानून वापस करवा लें।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

dafabet login

betvisa login ipl win app iplwin app betvisa app crickex login dafabet bc game gullybet app https://dominame.cl/ iplwin

dream11

10cric

fun88

1win

indibet

bc game

rummy

rs7sports

rummy circle

paripesa

mostbet

my11circle

raja567

crazy time live stats

crazy time live stats

dafabet