Tuesday, December 3, 2024
spot_img
HomeEditors' Choiceसाबरमती के संत तूने कर दिया कमाल...

साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल…

गांधी जयंती पर विशेष

आज गाँधी जयंती है,आज के हीं पावन दिन 02 अक्टूबर,1869 को शांति और अहिंसा नामक हथियार से महान ब्रितानी साम्राज्य की चूलें हिलाने वाले मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म उत्तर-पश्चिमी भारत की पोरबंदर रियासत में हुआ था।आपके पिता पोरबंदर रियासत के दीवान थे और उनकी माली हालत बहुत अच्छी थी।बालक का नामकरण संस्कार बडे धूमधाम से मनाया गया और उन्हें परिवार की तरफ से नाम मिला मोहनदास करमचंद गांधी।बालक मोहन के पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था।पिता रियासत के कार्यों में व्यस्त रहते थे मगर माँ ने बचपन से हीं अपने लाडले को हिंदू परंपरा और नैतिकता का पाठ पढ़ाया।माँ पुतलीबाई से हीं उन्हें धार्मिक सहिष्णुता,साधारण रहनसहन और शाकाहारी बनने की सीख मिली।माँ हमेशा लडाई-झगडे से दूर रहने की सीख दिया करती थीं और बालक मोहन उनकी बात को बड़े ध्यान से सुना करते थे।


बालक मोहनदास की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर के हीं स्कूल में हुई।पोरबंदर में अच्छे सीनियर स्कूल नहीं थे,माँ-बाप ने तय किया कि बालक का दाखिला राजकोट के अच्छे स्कूल में कराया जाए।राजकोट के जिस अंग्रेजी स्कूल में मोहनदास को दाखिला मिला,उस स्कूल की गिनती शहर के नामीगिरामी स्कूलों में होती थी।वहाँ पढाई तो अच्छी थी मगर मोहनदास की दोस्ती बदमाश लड़कों के साथ हो गई,जो उसी उम्र में शराब और मांसाहार का सेवन करते थे।जल्द हीं ये सारे व्यसन मोहनदास के पास आ गए।मोहनदास जुआ भी खेलने लगे थे और उन्होंने एक दो बार छोटी चोरी भी की।


मोहनदास को बिगड़ता देख उनके माता-पिता को लगा कि अगर उनकी शादी करा दी जाए तो हो सकता है वह इन व्यसनों से दूर हों जाएं।महज 13 वर्ष की उम्र में उनका विवाह 14 साल की कस्तूरबा से कर दी गई।शादी के बाद भी मोहनदास में कोई खास सुधार नहीं आया,आता भी कैसे उनकी संगत उन्हें सुधरने नहीं दे रही थी।इसी बीच मोहनदास के पिता गंभीर रूप से बीमार हो गए मगर मोहनदास को उनकी जरा भी परवाह नहीं थी।जिस समय उन्हें अपने पिता के पास रहना चाहिए था,उस समय वो बुरे कामों में व्यस्त रहते थे।एक दिन उनके पिता नश्वर शरीर को छोड़कर अनंत यात्रा पर चले गए।गाँधीजी ने अपनी किताब “सत्य के प्रयोग” में लिखा है कि प्राण त्याग करने से पहले उनके पिता उन्हें खोज रहे थें मगर मैं वासना से अभिभूत होकर अपनी पत्नी के कमरे में सो गया।


पिता की मौत ने मोहनदास को झकझोर कर रख दिया था।पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए मोहनदास ने अपना ध्यान पढाई में लगा दिया।उन्होंने बंबई के भावनगर काँलेज में दाखिला ले लिया मगर वे वहाँ खुश नहीं थे।उनकी इच्छा लंदन से बैरिस्टरी करने की थी।वे लंदन जाने को इच्छुक थे मगर परिवार में इसका कडा विरोध हो रहा था।थोडे प्रयास के बाद लंदन के एक काँलेज से कानून की पढ़ाई करने का प्रस्ताव आ गया।परिवार के विरोध के बावजूद वो लंदन कानून की पढ़ाई करने चले गए।इस बार उनपर पश्चिम के रंगढंग का असर बेहद कम रहा और वे वहाँ चल रहे शाकाहारी आंदोलन से जुड गए।साथ हीं लंदन की थियोसोफिकल सोसायटी से भी उन्हें अपने बचपन में मिली हिंदू मान्यताओं की सीख की ओर लौटने की प्रेरणा मिली,जो उनकी माँ ने सिखाए थे।


लंदन में पढाई के दौरान ये सारे सामाजिक कामों ने उन्हें बेहद परिपक्व बना दिया था।अच्छे नंबरों से वकालत पास कर वो भारत लौट आए और यहीं उन्होंने प्रैक्टिस शुरू कर दी।वकालत में अनुभव के महत्व का पता उन्हें तब लगा जब वे अपना पहला केस हार गए।इसी बीच एक अंग्रेज अधिकारी ने युवा मोहनदास को अपने घर से निकाल दिया।दरअसल वे काम के सिलसिले में उनसे मिलने उनके घर गए थे।इस घटना ने उनका दिल तोड दिया और वे वकालत करने दक्षिण अफ्रीका चले गए।दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान हीं वो दो बच्चों के पिता बने।उनके बड़े लड़के हरिलाल और दूसरे नंबर के मणिलाल का जन्म दक्षिण अफ्रीका में हीं हुआ।वहाँ उनकी वकालत जमने लगी थी तभी एक घटना हुई जिसके कारण उनकी जिंदगी की दिशा हीं बदल गई।


एक बार वे फर्स्ट क्लास के डब्बे में सफर कर रहे थे कि आधी रात को एक अंग्रेज ने उन्हें सामान सहित प्लेटफार्म पर फेंक दिया।इस अपमान से मर्माहत मोहनदास ने दक्षिण अफ्रीका में इंडियन कांग्रेस की स्थापना की,जिसका उद्देश्य रंगभेद के खिलाफ लड़ाई लड़ना था।थोडे हीं समय में उनकी ये मुहिम रंग लाई और वे दक्षिणअफ्रीका में दबे-कुचले भारतीयों की आवाज बनकर तेजी से उभरे।उन्होंने वहीं से स्व-शुद्धिकरण और सत्याग्रह जैसे सिद्धांतों का प्रयोग शुरू किया।उनका मानना था कि अहिंसा हीं वो हथियार है जिससे इस लड़ाई को जीती जा सकती है।


उन्होंने स्वंय को उदाहरण के रूप में पेश किया और अंग्रेजी वेशभूषा को त्यागकर सफेद धोती पहनना शुरू कर दिया।थोडे हीं दिनों बाद मोहनदास ने दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीयों पर तीन पौंड के टैक्स के खिलाफ आंदोलन शुरू किया।इस आंदोलन में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रह रहे मजदूरों,खनन कर्मियों और खेतिहर मजदूरों को जोडा।उन्हें भी गाँधी के रूप में एक मसीहा मिल गया था।उन्होंने आंदोलन को और तेज करते हुए नटाल से ट्रांसवाल तक विरोध की पदयात्रा निकालने का फैसला लिया।इसे उन्होंने आखिरी सविनय अवज्ञा आंदोलन का नाम दिया।यात्रा शुरू होने के पहले हीं गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया।उनके ऊपर केस चला और उन्हें नौ महीने की सजा हुई।बवाल होना हीं था और बवाल हुआ भी।विरोध और हड़ताल से घबडाए ब्रिटिश शासन ने भारतीयों पर लगने वाले तीन पौंड टैक्स को वापस ले लिया मगर ये विरोध तब तक जारी रहा जब तक गाँधी जेल से रिहा नहीं हुए।निहत्थे गाँधी की इस जीत को ब्रिटिश अखबारों ने खूब प्रमुखता से प्रकाशित किया और अब वे किसी परिचय के मोहताज नहीं रह गए थे।इस सफल आंदोलन से उत्साहित गाँधीजी ने भारत का रूख किया।


सन् 1915 में मोहनदास करमचंद गांधी एक विजेता के तौर पर भारत लौटे और उन्होंने आजादी की लडाई का नेतृत्व किया।


दक्षिण अफ्रीका के बनिबस्त यहाँ लडाई बेहद कठिन थी।अंग्रेज अधिकारी गाँधी के हर कदम पर कडी नजर रख रहे थे।भारत को नजदीक से जानने के लिए गाँधी और उनकी पत्नी ने रेलवे के तीसरे दर्जे में भारत भ्रमण का निश्चय किया।जैसे जैसे यात्रा आगे बढ़ती गई भारतीयों पर हो रहे अत्याचार ,भूखमरी,अंग्रेजों द्वारा संशाधनों की बेशुमार लूट का मामला सामने आने लगा।भारतीयों की पीडा देखकर गाँधीजी ने ये प्रण लिया कि अब वो आगे की जिंदगी इन्हीं की लडाई में खपाएंगें।
सबसे पहले उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत द्वारा लाए हुए काले कानून रौलट एक्ट का विरोध करने का निर्णय लिया।इस कानून के तहत अंग्रेज किसी भी नागरिक को केवल चरमपंथ के शक पर गिरफ्तार कर सकते हैं।इस काले कानून की आड में विरोध की आवाज उठानेवाले लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाता था।गाँधीजी के आहृवान पर लोग इस काले कानून के खिलाफ सडक पर उतर आए।शांतिपूर्ण प्रर्दशन के दौरान अमृतसर में जनरल डायर ने बीस हजार लोगों की भीड़ पर गोली चलवा दी,जिसमें चार सौ से ज्यादा लोग मारे गए और तकरीबन तेरह सौ से ज्यादा जख्मी हुए थे।देशव्यापी विरोध के बाद अंग्रेजों ने इस काले कानून को वापस लिया।
गाँधीजी को विरोध के लिए एक बड़े मंच की जरूरत थी और उन्होंने इसके लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को चुना।उस समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बडे और पढ़ेलिखे लोगों की पार्टी कही जाती थी।गाँधी ने अपने प्रयासों से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को जन जन तक पहुँचा दिया।रोज हजारों-लाखों लोग गाँधी के आंदोलन से जुड़ते गए और गाँधी की मुहिम और तेज होती गई।रोलेट कानून के वापस होने के बाद गाँधी के आहृवान पर जनता ने ब्रिटिश सामानों का वहिष्कार करना शुरू कर दिया।ब्रिटिश सामानों की होली जलाई जाने लगी तब बैखलाए अंग्रेज अधिकारियों ने गाँधी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया।गाँधीजी को दो साल की सजा सुनाई गई मगर ये आंदोलन और तेज हो गया था।
साल 1930 में गाँधीजी ने दांडी सत्याग्रह आरंभ किया।अंग्रेजों ने भारतीयों के नमक बनाने पर प्रतिबंध लगा रखा था।आपको बता दें ये प्रतिबंध मुगल शासन के समय से हीं था मगर बेहद कम।अंग्रेज यहाँ से नमक ब्रिटेन भेजते थे और वहाँ से ये भारतीय बाजारों में बिकने के लिए आता था।इस वजह से नमक के दाम बेहद अधिक होते थे।12 मार्च 1930 को गाँधीजी ने अपने 79 कार्यकर्ताओं के साथ साबरमती आश्रम से समुद्रतट पर स्थित दांडी की ओर कूच किया।दो सौ मील की यात्रा पैदल चलकर 24 दिन में पूरी की गई।सरदार पटेल ने अआगे आगे चलकर लोगों को गाँधीजी के स्वागत के लिये तैयार किया।मार्ग में गाँधीजी ने लोगों को बलिदान और अहिंसा कि उपदेश दिया।06 अप्रैल 1930 को प्रातः काल के बाद महात्मा गाँधी ने समुद्र तट पर नमक बनाकर नमक कानून को भंग किया।नमक कानून तोड़ने के आरोप में गाँधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया मगर तब तक गाँधीजी ने अपना काम पूरा कर दिया था।
गाँधी के नेतृत्व में दलित आंदोलन 08 मई,1932 में चलाया गया था।इसे छूआछूत विरोधी आंदोलन के नाम से भी जाना गया।गाँधीजी ने दलित बस्तियों में जाकर स्वच्छता का अभियान चलाया था।उनके इस मुहिम से समाज का हर तबका जुड़ता चला गया।गाँधीजी के नेतृत्व में चंपारण सत्याग्रह हुआ था,भला उसे कौन भूल सकता है।चंपारण सत्याग्रह नील की खेती के लिए उचित दाम दिलाने के लिए किया गया था।उन दिनों नील की खेती पर अंग्रेजों का पूर्ण नियंत्रण था।वो नील उत्पाद को इंग्लैंड भेजते थे,वहाँ से नील परिष्कृत होकर बहुत ऊँचे दामों पर यूरोपीय देशों में बिकता था।

मेहनत भारतीय मजदूर करते थे और उसका पूरा फायदा ब्रिटिश हुकूमत लेती थी।


बहुत से लोग देश विभाजन के लिए महात्मा गाँधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हैं मगर ये सत्य नहीं है।गाँधी ने पाकिस्तान निर्माण का हर मोर्चे पर विरोध किया था मगर उस समय की तात्कालिक परिस्थिति और अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति ऐसी थी कि बेमन से गाँधी को देश विभाजन स्वीकार करना पड़ा था।देश विभाजन का एक प्रमुख कारण देश में साम्प्रदायिक दंगे थे।मुसलमान धर्म के आधार पर एक अलग देश की मांग कर रहे थे,उनका मानना था कि भारत में हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते।दोनों कौमों में आपसी रंजिश इतनी ज्यादा थी कि हर छोटी बात पर दंगा भड़क जाता था।पहले शहरों तक हीं इन दंगों की तपिश रहती थी मगर धीरे धीरे इसका विस्तार गाँवों तक हो गया।भाईचारे का तानाबाना क्षणिक तनाव में होम हो जाता था।यद्यपि गाँधी ने ताउम्र इसके लिए प्रयास किया,मगर ये वो नासूर था जो बिना खून बहाए शांत नहीं होता था।


सन् 1942 में गाँधीजी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का निर्णायक आंदोलन शुरू किया,जो अंततः भारत की आजादी लेकर हीं समाप्त हुआ।”अंग्रेजों भारत छोडो” आंदोलन के दौरान हीं गाँधी और उनकी पत्नी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया मगर इससे आंदोलन और भड़क गया।जेल में समुचित इलाज के आभाव में गाँधीजी की पत्नी ईश्वर को प्यारी हो गई मगर गाँधीजी का मजबूत इरादा तनिक भी न डगमगाया।अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से पहले गाँधी ने कहा था,”या तो हमें भारत को आजाद कराना चाहिए या इस कोशिश में अपना बलिदान कर देना चाहिए,हम किसी भी कीमत पर आजीवन गुलामी का जीवन जीने के लिए राजी नहीं हैं।


द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों ने ये तय कर दिया था कि अब ज्यादा दिन भारत गुलाम नहीं रहेगा।इंग्लैंड में भारत को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिए चर्चा शुरू हो गई थी।ब्रिटिश शासन की तरफ से लार्ड माउंटबेटन का भारत भेजा गया।माउंटबेटन ने एक राष्ट्र के रूप में जिन्ना को समझाने की कोशिश की मगर वे पाकिस्तान बनाने पर अडिग थे।अंततः ये निर्णय लिया गया कि धर्म के आधार पर पाकिस्तान बनेगा मगर जो भी जहाँ रहना चाहे वो रह सकता है।


लार्ड माउंटबेटन ने राजा-रजवाड़ों के सामने ये शर्त रखी कि वो अपनी सुविधा के हिसाब से भारत या पाकिस्तान किसी में भी विलय कर सकते हैं या अपने आप को स्वतंत्र घोषित कर सकते हैं।इस बात पर गाँधी और जिन्ना दोनों सहमत थे।जो भी रियासत भारत या पाकिस्तान में विलय के लिए तैयार हो गया उन्हें खर्चे के लिए एक रकम देने की सहमति बनी।इस समझौते के पीछे भी गाँधी का हीं दिमाग था।


गाँधीजी साम्प्रदायिक दंगों से कितने व्यथित थे ये इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि जब स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनकी मंत्रिमंडल शपथ ले रही थी तब गाँधीजी बंगाल में चल रहे साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के लिए वहाँ अनशन कर रहे थे।जवाहरलाल ने गाँधीजी को एक पत्र लिखकर शपथग्रहण समारोह में रहने की गुजारिश की थी तो उन्होंने कहा था कि मैं कैसे लोगों को मरता देख दिल्ली आ सकता हूँ।


जब बंगाल में दंगे रूके तभी गाँधीजी दिल्ली आए।दिल्ली प्रवास के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को एक सिरफिरे ने जब वो बिरला हाउस में प्रार्थना के लिए जा रहे थे,तीन गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।सारा राष्ट्र इस घटना से स्तब्ध था।गाँधीजी की हत्या में नाथूराम गोडसे और उनके सदस्यों को फाँसी की सजा हुई मगर एक साजिशकर्ता सावरकर सबूतों के अभाव में छूट गया।गाँधीजी भारत के लिए क्या थे इसे इस बात से समझा जा सकता है कि गाँधी की हत्या के बाद सावरकर जब तक जिंदा रहे,गुमनामी की जिंदगी हीं जीते रहे।सावरकर की अंतिम यात्रा में उनके परिवार के चंद लोगों के अलावा और कोई शामिल नहीं हुआ,जबकि गाँधीजी की अंतिम यात्रा में भारी जनसैलाब उमडा था।एक अनुमान के अनुसार तकरीबन दस लाख से ज्यादा लोगों ने अपने राष्ट्रपिता को अंतिम श्रद्धांजलि दी थी।


आज राष्ट्रपिता की जयंती है,संपूर्ण राष्ट्र उनके द्वारा किए गए निःस्वार्थ कार्यों को याद कर रहा है।गाँधी जैसी शख्सियत न तो कभी पैदा हुई थी और न हीं कभी होगी।
(वरिष्ठ पत्रकार अजय श्रीवास्तव के Fb वाल से साभार)

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img

Most Popular

kuwin

iplwin

my 11 circle

betway

jeetbuzz

satta king 786

betvisa

winbuzz

dafabet

rummy nabob 777

rummy deity

yono rummy

shbet

kubet

winbuzz app

daman games online

winbuzz app

betvisa app

betvisa app

betvisa app

fun88 app

10cric app

melbet app

dafabet login

betvisa login ipl win app iplwin app betvisa app crickex login dafabet bc game gullybet app https://dominame.cl/ iplwin

dream11

10cric

fun88

1win

indibet

bc game

rummy

rs7sports

rummy circle

paripesa

mostbet

my11circle

raja567

crazy time live stats

crazy time live stats

dafabet

https://rummysatta1.in/

https://rummyjoy1.in/

https://rummymate1.in/

https://rummynabob1.in/

https://rummymodern1.in/

https://rummygold1.com/

https://rummyola1.in/

https://rummyeast1.in/

https://holyrummy1.org/

https://rummydeity1.in/

https://rummytour1.in/

https://rummywealth1.in/

https://yonorummy1.in/

jeetbuzz login

iplwin login

yono rummy apk

rummy deity apk

all rummy app

betvisa login

lotus365 login

betvisa app

https://yonorummy54.in/

https://rummyglee54.in/

https://rummyperfect54.in/

https://rummynabob54.in/

https://rummymodern54.in/

https://rummywealth54.in/

betvisa app

mostplay app

4rabet app

leonbet app

pin up casino

mostbet app

rummy glee

Fastwin Apk

Betvisa app

Babu88 app

jeetwin

nagad88

jaya9

joya 9

khela88

babu88

babu888

mostplay

marvelbet

baji999

abbabet

Joya9

Mostbet BD

MCW Casino

Jeetwin Result

Babu88 ক্যাসিনো

Nagad88 লগইন করুন

Betvisa লগইন করুন

Marvelbet লগইন

Baji999 লগইন করুন

Jeetbuzz লগইন

Mostplay Affiliate

JW7

Melbet App

Betjili Affiliate

Six6s লগইন

Krikya Best

Jitabet App

Glory Casino APK

Betjee Affiliate

Jita Ace Casino

Crickex Affiliate

Winbdt Login

PBC88 Login

R777 Bet

Jitawin Login

Khela88 Login

Bhaggo Login